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भारतीय शिक्षा पद्धति विश्व की श्रेष्टतम शिक्षा पद्धतियों में से एक मानी जाती है. इस पद्धति में छात्र काफी कम समय में काफी अधिक ज्ञान अर्जित कर लेते हैं.
नतीजन आज अमेरिका और यूरोप के कोल्लेजो में प्रथम श्रेणी के छात्रों में एक बड़ा भाग भारतीयों का है. विज्ञानं के क्षेत्र में भारतीयों ने पूरे विश्व में छाप छोड़ी है.
परन्तु इस शिक्षा पद्धति के भी गंभीर दुष्प्रभाव हैं, जो भारत के भविष्य के दृष्टिकोण से अत्यंत मेहेत्वपूर्ण हैं.
सर्वप्रथम, भारतीय शिक्षा पद्धति में अत्याचार के खिलाफ सहिष्णुता उत्पन्न करने की सीख दी जाती है. अगर कोई किसी छात्र के साथ मारपीट अथवा दुर्व्यवहार करे या उसे हानि पहुचाये तो उससे कहा जाता है,”आँखें मूँद लो और इसे भूल जाओ. तुम ‘अच्छे बच्चे’ हो, तुम्हे बड़े होकर डॉक्टर- इन्जिनेअर बनना है.”
अच्छे बच्चे की ये परिभाषा पढ़े लिखे तबके तो कायर बना रही है.
कायरता को सहिष्णुता का नाम दिया जाता है जिससे बड़े होकर भी ये छात्र किसी भी अत्याचार के खिलाफ्र आवाज़ उठाने से बचते है. और किसी भी क्रांति के लिए अनपढ़ और निचले तबके का ही अधिक योगदान रहता है. पढ़े लिखे लोग सामाजिक और देशहित में आवाज़ उठाने से डरते हैं. पढ़े लिखे तबके की यह उदासीनता देश के भविष्य के लिए खतरनाक है.
वहीं दूसरी तरफ छात्रो में धर्म और देश के प्रति समर्पण की भावना निरंतर घट रही है. भारतीय शिक्षा पद्धति में धार्मिक और नैतिक शिक्षा को कोई विशिष्ट स्थान ना देने की वजह से ही भारत जैसे देश में भी वृद्धाश्रम एवं अनाथाश्रम खोलने की ज़रुरत बढती ही जा रही है.
शिक्षित वर्ग भोग विओलासिता से भरा जीवन जी रहा है जिसमे संस्कारो की एहमियत घटती जा रही है. मातृभूमि और मातृभाषा की बात करने वालो का मज़ाक उदय जाता है. अश्लील चित्रों से भरपूर अंग्रेजी अखबार पढने में गर्व महसूस किया जाता है.
धार्मिक और नैतिक शिक्षा के आभाव के कारण ही स्कूल कॉलेज आज विद्या के मंदिर नहीं, अपितु ‘डेटिंग स्पोट’ बनते जा रहे हैं. लड़के-लडकियों का परिचय स्त्र्हल, पिकनिक स्थल बनते जा रहे हैं.
और ‘प्यार’ के नाम पे कैसे कैसे अकथ्य कर्म किये जा रहे हैं. और फिर मज़े ले लेकर इन कर्मो के किस्से दोस्तों-सहेलियों को सुनाकर गर्व का एहसास किया जा रहा है.
यह शिक्षा पद्धति कहीं इस देश की संस्कृति और पहचान ही ना ख़त्म कर दे इससे पहले इस पद्धति के ‘ भारतीयकरण ‘ की बहुत सख्त ज़रुरत है.
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